मातारानी के दरबारों में महाअष्टमी की पूजा- अर्चना

 मातारानी  के दरबारों में महाअष्टमी की पूजा- अर्चना

मॉ पांढरीपाठ मंदिर में 1878 कलश किये गये विसर्जित



बालाघाट,लांजी। क्षेत्र के प्रसिद्ध देवी धाम पहाड़ा वाली मॉं पांढरी पाठ के दरबार में महाअष्ठमी की पूजा अर्चना संपूर्ण भक्ति भाव के साथ की गई, प्रात: 6 बजे हवन पूजन प्रारंभ हो जो कि पण्डा बाबा रेखलाल कावरे, डॉ सुधीर दशरिया, कैलाश शंकर राव हुमडे्, ऋषि पटले, सहित समस्त मंदिर समिति के सदस्य, कार्यकर्ता गणों एवं ग्राम वासियों की उपस्थिति में हवन पूजन आराधना प्रारंभ की गई। सुबह से लेकर संध्या काल तक विभिन्न अनुष्ठानों के पश्चात मंदिर में स्थापित लगभग 1878 मनोकामना ज्योति कलशो का विसर्जन खराड़ी जलाशय के समीप किया गया।

नवरात्रि के अष्ठमी के पावन दिवस पर देवी धामों में एवं हवन पूजन प्रात: काल से प्रारंभ हो गया। देवी मंदिरों धरो में नौ कन्या भोजन करवाया गया तत्पश्चात हवन आहुति एवं आरती की गई। चैत्र नवरात्री पर्व पर मॉ दुर्गा मैया के नौ रूपों की अराधना की जाती है जिसमें प्रथम, शैलपुत्रि, द्वितीय ब्रम्हचारिणी, तृतीय दिन चन्द्रघंटा, चतुर्थ दिन कुष्मांडा माता, पंचम दिन स्कन्दमाता, शष्ठम दिन कात्यायिनी, सप्तम दिन काल रात्रि एवं अष्ठमी में महागौरी माता का पुजन अर्चन किया जाता है एवं नवम तिथी को सिद्धदात्री नौ दिवस व्रत रखकर अपने अपने अनुसार माताऐं, पुरूष पुजा आराधना करते है। लांजी नगर सहित आस पास के समस्त देवी मंदिरों मे महाअष्ठमी की पुजा आराधना संपन्न हुई। नौ कन्या भोजन से ही पूर्ण होती है माता की आराधना-मान्यता है कि नवरात्रि पर्व पर मॉ जगदम्बे के नौ स्वरूपों को जिसमें शैलपुत्रि, ब्रम्ळचारिणी, चंन्द्रघंटा, कुष्मांडा माता, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी माता, सिद्धदात्री माता इन नौ स्वरूपों को विधी विधान पूर्व पूजा अर्चना कर घरों में मंदिरों में, आमंत्रित किया जाता है एवं कन्या स्वरूपी माता का प्रिय भोजन हल्वा पूड़ी, चना गुड़, खीर आदि का भोग लगाया जाता है। नौ दिन की इस नवरात्रि में मां जगतत जननी भी व्रत करती है, जिसे वह नौ कन्या भोज के दिन अपने व्रत को पूरा करतती है एवं भोग लगाती है।

सती माता मंदिर में महाअष्ठमी पूजन

लांजी नगर के वार्ड क्रमांक 8 स्थित सती माता मंदिर में महाअष्ठमी पूजन किया गया, मंदिर स्थापित परिवार के सदस्यों के द्वारा सती माता की पूजन अर्चन हवन पूजन किया गया, माता को हल्वा पूड़ी चना, खीर का भोग लगाकर साथ ही नौ कन्याओं को प्रसाद रूपी भोजन का भोग लगाया7 जाकर महाअष्ठमी की पूजन अर्चन संपन्न हुआ।

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