वारासिवनी में जायसवाल ने बनाई हैट्रिक

 वारासिवनी में जायसवाल ने बनाई हैट्रिक



बालाघाट। मध्यप्रदेश् के बालाघाट जिले के वारासिवनी विधाानसभा सीट क्रमांक 112 इस विधानसभा के पंचवर्षीय कार्यकाल में हाई प्रोफाइल सीट के रूप में बनकर उभरी है। इसका कारण यह है कि यहां पर विधानसभा चुनाव 2018 से जिस प्रकार का राजनीतिक घटनाक्रम घटित हुआ उसने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। वर्तमान समय क्षेत्र के विधायक एवं मध्यप्रदेश खनिज विकास निगम के अध्यक्ष की निरंतर क्षेत्र में सक्रियता के कारण आज भी वह अपने विपक्षी कांग्रेस एवं भाजपा पर भारी नजर आ रहे है। 2023 में क्या परिदृश्य बनेगा उस पर अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

निर्दलीय जायसवाल के पांच विधानसभा चुनाव के चुनावी यात्रा पर नजर दौड़ाए तो हम पाते है कि उनको मिलने वाली वोटों का प्रतिशत पराजय के पश्चात भी बहुत ज्यादा नीचे नहीं आया। 2013 में जब वह पराजित हुए थे तब भी 34.30 प्रतिशत वोट उनको मिले थे  और जीतने वाले को 46.88 प्रतिशत मत मिले थे। 2018 में जब वह निर्दलीय लड़े तब भी उनके वोटों का प्रतिशत 37.23 था और उनके विरोधी का 34.74 प्रतिशत था। कहने का आशय यह है कि जायसवाल ने चार चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार के रूप से लड़े जिसमें तीन जीते व एक हारे पर मतों का प्रतिशत उनका कभी भी नीचे नहीं आया। जबकि जातिगत आधार पर हम आंकलन करें तो विधायक जायसवाल का इस क्षेत्र में बहुत बड़ा सामाजिक वोट बैंक नहीं है पर खड़े कार्यकर्ता के साथ सीधा संवाद उनको मजबूती देता है। साल के 365 दिन होते है और ये कम से कम 300 दिन किसी न किसी कार्यक्रम  के बहाने आम जनता के बीच बने रहते है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस सीट पर विधायक जायसवाल(1998, 2003,2008, 2018) ने हैट्रिक बनाने के रिकार्ड को भी उन्होंने तोड़ा है और अब तक वह चार चुनाव यहां से जीत चुके है।

क्षेत्र में उनकी सक्रियता का ही परिणाम था कि  2009 एवं 2014 में नगर पालिका वारासिवनी में कांग्रेस का अध्यक्ष एवं अन्य पार्षद विजयी हुए। आज भी जब वे निर्दलीय है तो क्षेत्र का दामन उन्होंने नही छोड़ा, कोरोना जैसे भीषण महामारी में भी वह क्षेत्रीय जनता के सहयोग के लिये हमेशा फील्ड में देखे गये। इतना ही नही इस महामारी से निपटने के लिये आवश्यक सारी सुख सुविधायें भी उन्होने क्षेत्रीय चिकित्सा केन्द्रों में उपलब्ध कराई और पूरे विधानसभा क्षेत्र में शासकीय चिकित्सा केन्द्रों को उन्होंने सुविधा संपन्न बनाने में कोई कमी नही छोड़ी।

हालांकि कांग्रेस के लोग विधायक जायसवाल द्वारा राज्य में सत्ता पलट के पश्चात भाजपा को समर्थन देने के मुद्दे पर उनकी आलोचना करते है पर वास्तविकता तो यही है कि कांग्रेस ने खुद इस सीट पर एक मजबूत उम्मीदवार को बिना किीस वजह के वष्र 2018 के चुनाव में टिकट काटकर अपने से दूर किया। जब कांग्रेस की सरकार बनी तो विधायक जायसवाल को सरकार में खनिज मंत्री बनाया गया था। उनका असर यह रहा कि जब प्रदेश में सत्ता की उलटफेर हुई तो जायसवाल कांग्रेस विधायकों के सााि जयपुर गये, इतना ही नही उन्होंने भाजपा नेता के साथ अन्य निर्दलीयों के साथ दिल्ली जाना उचित नही समझा और वह कांग्रेस के समर्थन में रहे। लेकिन जब कांग्रेस सरकार सत्ता के बाहर हो गई तो उनके सामने अपने क्षेत्र के विकास को लेकर यही विकल्प था कि वह या तो निर्दलीय रहे या सरकार को समर्थन देकर वारासिवनी क्षेत्र में जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यो को संपन्न कराये। यही उन्होंने किया। उसका लाभ यह मिला कि कई बड़े प्रोजेक्ट उनके विधानसभा क्षेत्र में इस समय निर्माणाधीन है कुछ की स्वीकृति आना बाकी है। उनके भाजपा के समर्थन से क्षेत्र को लाभ मिला, इससे कैसे इंकार कर सकते है।

महत्वपूर्ण बात तो यह भी है कि जब 2023 के चुनाव की चर्चा होती है तो आज भी कांग्रेस पार्टी हो या भाजपा दोनो के पास इतने मजबूत उम्मीदवार दिखाई नही पड़ते जो निर्दलीय जायसवाल को सीधे कड़ी चुनौती देते हुए दिखे। उम्मीदवार के रूप मे तो दोनो दलो की ओर से कई नाम उभर रहे है पर राजनीतिक पकड़ की जब बात आती है तो फिलहाल जायसवाल ही भारी दिख रहे है। आगे क्या होगा इस पर कुछ कहना जल्दबाजी है। यह सही है कि क्षेत्र का 70 से 80 प्रतिशत कांग्रेस का वर्कर व वोटर आज भी उनके साथ जुड़ा हुआ है। जायसवाल  भले ही भजपा सरकार को समर्थन दे रहे है पर उनके आने से स्थानीय भजपा नेताओं के राजनीतिक कद घट जायेंगे इस कारण उनके साथ आकर खड़े होने में वह संकोच कर रहे है।

वारासिवनी विधानसभा  क्षेत्र की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति बेहद रोचक है। इस कारण जब भी जिले में हो या जिले के बाहर बालाघाट जिले की राजनीति की चर्चा होती है तो पहला नाम वारासिवनी का आता है कि वहां क्या होगा। 2023 में जायसवाल निर्दलीय होंगे या किसी दल के उम्मीदवार के रूप में अपनी किस्मत आजमायेंगे इत्यादि।

वर्ष 1998 से 2018 तक के पांच विधानसभा चुनाव का आंकलन करें तो हम पाते है कि विधायक जायसवाल जिन्होंने लगातार चार चुनाव कांग्रेस पार्टी से लड़े तब उनका वोटों का प्रतिशत कुछ इस तरह से रहा। 1998 में जायसवाल को 38.84 प्रतिशत मत मिले। वहीं 2003 में जायसवाल को 36.61 एवं 2008 में 41.77 प्रतिशत मत मिले। 2013 में जायसवाल को 34.30 प्रतिशत व 2018 में निर्दलीय जायसवाल को 37.74 प्रतिशत मत मिले थे। इस तरह से जिस वारासिवनी सीट पर कांग्रेस प्रथम या द्वितीय स्थान पर रहती थी इसे नये चेहरे को अवसर देने के कारण चैथे स्थान पर आना पड़ा। बहरहाल बालाघाट जिले की 6 सीटो में से एक वारासिवनी 2018 की तरह 2023 में भी हाई पॉलिटिकल वोल्टेज वाली सीट रहेंगी इसके संकेत 2022 से ही समझ आ रहे है। जितेगा कौन इस पर अभी से टिप्पणी करना उचित नही होगा पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि निर्दलीय होने के पश्चात भी इस सीट पर जायसवाल जो विगत 25 वर्षो से क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय है। उनका दबदबा साफ तौर पर देखा जा सकता है। कांग्रेस एवं भाजपा उनको चुनौती देने के लिये उस तरह से दूर दूर तक सक्रिय नजर नही आती जिसका वह दावा करते है।

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