देश से छुआछूत खत्म करने में अहम भूमिका महात्मा ज्योतिबा फुले की: अजय सुखदेवे

 देश से छुआछूत खत्म करने में अहम भूमिका महात्मा ज्योतिबा फुले की: अजय सुखदेवे

 सम्राट अशोक सेना ने मनाई ज्योतिबा फुले की 195 वी जयंती



बालाघाट। नगर के वार्ड क्र 24 सुरभी नगर के डॉ. अम्बेडकर पार्क में सामाजिक क्रांति के प्रेरणा महात्मा ज्योतिबा फुले की 195 वी जयन्ती मनाई गई। सर्व प्रथम कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुकदेव भौतेकर ने दीप प्रज्वलित कर, सुकाजी डोंगरे ने महात्मा ज्योतिबा फुले की छाया चित्र पर माल्यार्पण किया, उपस्थित बुद्ध अनुयायियों के द्वारा बुद्ध वन्दना, त्रिशरण, पंचशील कर महात्मा ज्योतिबा फुले की छायाचित्र पर पुष्प अर्पित किए।  

कार्यक्रम के आयोजक सम्राट अशोक सेना के राष्ट्रीय सचिव अजय सुखदेवे अपने उदबोधन में कहा देश से छुआछूत खत्म करने और समाज को सशक्त बनाने में अहम किरदार निभाने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले माली का काम करता था। वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करते थे इसलिए उनकी पीढ़ी फुले के नाम से जानी जाती थी। 

 उन्होन आगे कहा की ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने मराठी में अध्ययन किया। वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। 1840 में ज्योतिबा का विवाह सावित्रीबाई से हुआ था। महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आंदोलन जोरों पर था। जाति-प्रथा का विरोध करने और एकेश्वरवाद को अमल में लाने के लिए 'प्रार्थना समाज की स्थापना की गई थी जिसके प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे। उस समय महाराष्ट्र में जाति-प्रथा बड़े ही वीभत्स रूप में फैली हुई थी। स्त्रियों की शिक्षा को लेकर लोग उदासीन थे, ऐसे में ज्योतिबा फुले ने समाज को इन कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। उन्होंने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था। उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला। लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा को दिया जाता है। इन प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन जारी थे जिसने सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त किया था। लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत हुई, जो आजादी की लड़ाई में उनके संबल बने। उन्होंने किसानों और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था।

 ज्योतिराव गोविंदराव फुले की मृत्यु 28 नवंबर 1890 को पुणे में हुई। इस महान समाजसेवी ने अछूतोद्धार के लिए सत्यशोधक समाज स्थापित किया था। उनका यह भाव देखकर 1888 में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई थी। इस कार्यक्रम में इंजीनियर सुशील डोंगरे,श्याम लाल चौरे,सूरज घरडे, हर्ष शेंडे, अजय वाशनिक, नेहल डोंगरे, पंकज कुर्वे, सुभाष, अर्शित, आशीष वाशनिक, सानू, राहुल आदि बौद्ध अनुयायी उपस्थित रहे।

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